Shankar Nagar, Raipur, Chhattisgarh, 492007

हमारे देश में हर छह में से एक व्यक्ति आर्थराइटिस से पीड़ित है। आर्थर्राइटिस की समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक पाई जाती है। जब हम अर्थराइटिस या गठिया की बात करते हैं, तो ज्यादातर लोगों के दिमाग में जोड़ों के दर्द के साथ अपने बुजुर्ग रिश्तेदारों की तस्वीर उभरने लगती है. लेकिन अर्थराइटिस निश्चित रूप से एक ‘बुजुर्गों’ की स्थिति नहीं है. वास्तव में, कुछ प्रकार के अर्थराइटिस हैं, जो युवा और मध्यम आयु वर्ग के लोगों में दिखाई देते हैं और इसका एक उदाहरण रूमेटाइड अर्थराइटिस (आरए) है.

रूमेटाइड अर्थराइटिस एक सूजन संबंधित विकार है जिसका असर इंडिया में सबसे ज्यादा घुटने के जोड़ों पर पड़ता है। इस बीमारी से न सिर्फ जोड़ों पर असर पड़ता है बल्कि शरीर के तंत्र, त्वचा, आंखों, लंग्स, दिल और खून की धमनियों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इस बीमारी का इलाज लंबे समय तक या जिंदगी भर चल सकता है। यह एक ऑटोइम्यून (autoimmune) बीमारी है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बाहरी दुश्मन को नुकसान पहुंचाने की बजाए, स्वस्थ कोशिकाओं को ही नुकसान पहुंचाना शुरू कर देती है।

यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। कुछ व्यक्तियों में पर्यावरणीय कारणों से भी यह रोग हो सकता है। कई संक्रामक अभिकरणों का पता चला है। रोग के बढ़ने या कम होने में हार्मोन विशेष भूमिका निभाते हैं। महिलाओं में pregnancy या रजोनिवृति के दौरान ऐसे मामले अधिकतर देखने में आते हैं। कई और कारण भी बताएँ जाते हैं जैसे कॉन्सटिपेशन, गैस, एसिडिटी, अव्यवस्थित जीवनशैली और अनियमित खान-पान आदि में से कुछ भी हो सकता है। कई बार शारीरिक श्रम कम होने और मानसिक श्रम अधिक होने के कारण भी यह बीमारी हो सकती है।

ब्लड टेस्ट के जरिए इस बीमारी का पता लगाया जाता है. इसमें सामान्य एरिथ्रोसाइट सेडिमेंटेशन रेट (ESR), एंटी-साइक्लिक सिट्रूलेटेड पेप्टाइड (ANTI CCP) एंटीबॉडी लेवल या सी-रिएक्टिव प्रोटीन (CRP) के स्तर की जांच की जाती है.

गठिया का उपचार आज एलोपैथ, आयुर्वेद और होम्योपैथ- चिकित्सा की तीनों विधाओं में मौजूद है। आयुर्वेद के मुताबिक ऑर्थराइटिस के उपचार में सबसे पहला कदम कोलन विषविहीन करना होता है, क्योंकि वहां सड़ रहे तत्व ही रक्त के जरिए जोड़ों तक पहुंचते हैं और समस्या पैदा करते हैं। इस बीमारी में रोगी को ठंड से पूरी तरह बचना होगा। नहाने के दौरान गर्म पानी का इस्तेमाल करें और सूजन वाले स्थान पर बालू की थैली या गर्म पानी के पैड से सेंकाई करें। रोगी को अपनी शक्ति के अनुसार हल्का व्यायाम जरूर करना चाहिए। गठिया के मरीजों के लिए डाइट पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। अधिक तेल व मिर्च वाले भोजन से परहेज रखें और डाइट में प्रोटीन की अधिकता वाली चीजें न लें। भोजन में बथुआ, मेथी, सरसों का साग, पालक, हरी सब्जियों, मूंग, मसूर, परवल, तोरई, लौकी, अंगूर, अनार, पपीता, आदि का सेवन फायदेमंद है। इसके अलावा, नियमित रूप से लहसुन व अदरक आदि का सेवन भी इसके उपचार में फायदेमंद है।

ALLOPATHY में NSAIDS, DMARDS and BIOLOGICS का इस्तेमाल किया जाता है। जब घुटने के जोड़ बहुत अधिक खराब हो जाते हैं और मरीज का चलना-फिरना दुभर हो जाता है, तब घुटने को बदलने की जरूरत पड़ती है, जिसे टोटल नी रिप्लेसमेंट कहा जाता है।